मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 34
पद-परिचय-सोपान मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 34 जिस प्रकार स्वप्न-काल में स्वप्न-दृष्टा व्यक्ति स्वप्न को सत्य मानता है , परन्तु जागृत दशा की पुनर्स्थापना पर वह स्वप्न-दृष्टा स्वयँ स्वप्न को मिथ्या बताता है । उसी प्रकार इस जगत् के साथ व्यवहार-रत् जागृत-दशा का व्यक्ति भी , अपने सत्य-स्वरूप अर्थात् अपने आत्म-स्वरूप को जानने के बाद इस जागृत-दशा के व्यव्हार्य जगत् को भी मिथ्या बताता है । इस स्थल पर दो विशिष्ट ज्ञेय का सज्ञान लेना अनिवार्य है । पहला सत्य क्या है और मिथ्या क्या है ? दूसरा यह स्वप्न-दशा , जागृत-दशा , और सुशुप्त-दशायें क्या हैं ? उत्तर है सत्य वह कहा जाता है जो त्रिकाल सत्य है , और मिथ्या उसे कहा जाता है जो अपेक्षा-कृत निम्नस्तरीय सत्य है , जैसे व्यक्ति सत्य है तो उसकी छाया मिथ्या है । दूसरा स्वप्न-दशा , जागृत-दशा , सुशुप्ति-दशा यह तीनो मस्तिष्क की तीन अवस्थायें हैं इनका चैतन्य से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होता है । मुख्य विषय में वापस लौटते हुये , इस जगत् को स्वप्नवद् मिथ्या जानने के उपरान्त स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि सत्य-स्वरूप जिसे आत्म-स्वरूप बताया जाता है वह क्...