मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 13
पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 13 स्वप्न देखते समय यदि कंचिद व्यक्ति यह जानता रहे कि वह स्वप्न देख रहा
है । उपरोक्त स्थिति, ज्ञानी के जीवन की कल्पना है । यह
व्यवहारिक जीवन भी स्वप्न है । कैसे ? ज्ञान की दशा प्राप्त होने पर और ज्ञान
के आधार को सत्य आधार मानते हुये यह व्यवहारिक जीवन भी स्वप्न है । स्वप्न सत्य है
। कब ? स्वप्नकाल में और स्वप्न-दृष्टा के
सत्यत्व के आधार पर स्वप्न सदैव सत्य है । परन्तु स्वप्नकाल की क्षीणता पर अर्थात्
जागृत दशा में स्वप्न मिथ्या है । यही स्थिति व्यवहारिक जगत् और लोकव्यवहार के
जीवन का सत्यत्व भी अहंकार के आधार पर आश्रित जीवन की अवधि पर्यन्त ही सत्य है ।
परन्तु पारमार्थिक सत्य अर्थात् अपने आत्मस्वरूप के ज्ञान बोध अर्थात् अहम्
ब्रम्हास्मि स्वरूप की अनुभूति की दशा में, यह जगत् और लोकव्यवहार का जीवन और जगत्
सभी कुछ मिथ्या है । उपरोक्त समस्त कथन कोई परियों की कहनी नहीं है । कोई भी
व्यक्ति इसे स्वयं अनुभूत कर उपरोक्त कथन की सत्यता की पुष्टि स्वयं अपने अनुभव से
कर सकता है.......क्रमश:
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