मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 6


पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 6 साक्षी चैतन्य के सम्बन्ध में जिस विलक्षण स्थिति का विवरण गत अंक में प्रस्तुत किया गया है, उसे एक उदाहरण के द्वारा और स्पष्ट किया जा रहा है । उदाहरण इस प्रकार है, प्रकाश की उपस्थिति में ही कोई वस्तु-रूप दृष्य हो सकता है, उसी प्रकार इस ज्ञानस्वरूप साक्षी चैतन्य के उपस्थिति में ही मस्तिष्क में कोई भी ज्ञानबोध सम्भव हो सकता है । शास्त्र उपरोक्त साक्षी का अधिक विश्लेषण करते हुये उसे ही निर्पेक्ष सत्य ब्रम्हस्वरूप आत्मा का उपदेश करते हैं और जो चैतन्य मस्तिष्क की तीन स्थितियों अर्थात् जागृतदशा, स्वप्नदशा और सुशुप्तिदशा में प्रगट होता हैं उन्हे मिथ्या करार करते हैं । उपरोक्त विवरण द्वारा विलक्षण साक्षी की वृत्ति को मिथ्या चेतन को धारण करना अपेक्षित है । यदि यह सम्भव हो जाय तो यह ही ज्ञान है । समस्त उपदेश का सार यह है कि यह ज्ञान शुद्ध रूप से मिथ्या चेतन की ग्राह्य शक्ति और सतत् उस ग्राह्य किये गयी साक्षी की वृत्ति को मस्तिष्क के पटल पर स्थिर रखने की क्षमता पर निर्भर है | .........क्रमश:  

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

साधन-चतुष्टय-सम्पत्ति

चिदाभास

निषिद्ध-कर्म