मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 5
पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 5 मस्तिष्क में विद्यमान चैतन्य की दूसरी क्षवि की वृत्ति की खोज को सतत्
रखते हुये पाते हैं कि शास्त्र इसके विषय में उपदेश करते हुये बताते हैं कि यह एक-आत्मप्रत्ययसारं
है इसका अर्थ विस्तार इस प्रकार किया जाता है कि चैतन्य की पहली छवि जहां कहीं भी
विद्यमान पायी जाती है, उन समस्त स्थलों पर यह भी उपस्थित रहता
है अर्थात् विद्यमान रहता है । यह स्थिति समझने के लिये ही इस चैतन्य की दूसरी
क्षवि को साक्षी के रूप में उपदेश किया जाता है, जिसका अर्थ यह हुआ
कि यह उपस्थित तो सर्वत्र है, परन्तु किसी अन्य के साथ युक्त नहीं होता
है अपितु सभी से भिन्न रहते हुये मात्र उपस्थित रहता है । इस कारण से ही यह
विलक्षण है । यह किसी भी प्रमाण का प्रमेय भी नहीं बन सकता है, जैसा कि गत अंक में वर्णन किया गया था । इसके वृत्ति के सम्बन्ध में यह
समस्त क्लिष्ट स्थिति इसलिये है कि यह स्वयं ज्ञान-स्वरूप होने के कारण यह सदैव
विषय है । ज्ञानस्वरूप ब्रम्ह है । यह मस्तिष्क में उपस्थित चैतन्य की दूसरी क्षवि
आत्म-ब्रम्ह है । इस प्रकार इसकी अहम् ब्रम्हास्मि वृत्ति है........क्रमश:
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