मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 10


पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 10 आत्मज्ञान का अभिप्राय सीधे और सरल अभिव्यक्ति में यह है कि अपने अन्दर विद्यमान शुद्ध चैतन्य स्वरूप को ब्रम्हस्वरूप का बोध है । इस स्थल पर ज्ञातव्य है कि जैसा कि प्रारम्भ से ही बताया गया है, आपके अन्दर चैतन्य की दो अनुभूतियाँ विद्यमान है, एक भ्रामक है जिसे अहंकार बताया जाता है जो कि आपके मस्तिष्क को चेतना की अनुभूति प्रदान करती है और दूसरी क्षवि जो कि प्रथम भ्रामक अहंकार से विलक्षण है जो कि शुद्ध है और जिसकी उपस्थिति से प्रथम को जन्म मिला है, को अलग अलग जानते हुये, शुद्ध चैतन्य जो कि आपकी आत्मा है, वह ब्रम्ह स्वरूप है, उसका आश्रय ग्रहण करने का उपदेश शास्त्र करते हैं.........क्रमश: 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

साधन-चतुष्टय-सम्पत्ति

चिदाभास

अर्थापत्ति-प्रमाण