मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 27
पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 27 सत्य ब्रम्ह के सत्यत्व के ऊपर कल्पित
नाम-रूप-कार्य जगत् है । जगत् माया सृष्टि है । जगत् का सत्यत्व ब्रम्ह है ।
व्यक्त दशा और अव्यक्त दशा यह जगत् का उदय और लय है । वृक्ष बीज़ में अव्यक्त दशा
में है । व्यक्त होने पर वह वृक्ष है । व्यक्त से अव्यक्त और अव्यक्त से व्यक्त यह
माया का बुद्धि कौशल है । जीव सृष्टि में स्थूल-शरीर और सूक्ष्म-शरीर कार्य दशा है
जिसकी कारण दशा कारण-शरीर है । कारण सदैव अव्यक्त दशा है जो कि व्यक्त दशा की धारक
होती है । कारण शरीर में सूक्ष्म-शरीर और स्थूल शरीर अव्यक्त दशा में विद्यमान हैं
। कारण ही कार्य के रूप में विदित हो जाता है । यह सब माया का क्षेत्र है ।
पारमार्थिक इस कार्य-कारण-क्षेत्र से परे शुद्ध कार्य-कारण-विलक्षण क्षेत्र है ।
माया ने जड और चेतन को विभक्त करके भोक्ता-भोज्य स्वरूप का सृजन किया है ।
भोक्ता-भोज्य दोनो मिथ्या है । सत्य भोक्ता-भोज्य-विलक्षण है । उपरोक्त भेद को
ग्राह्य बनाना ही मस्तिष्क की क्षमता के आश्रय पर है । मस्तिष्क सूक्ष्म-शरीर का
अंग है । मृत्यु की दशा में सूक्ष्म-शरीर स्थूल-शरीर का त्याग कर गति करके दूसरी
स्थूल-शरीर ग्रहण करती है । इस प्रकार मस्तिष्क के संस्कार जन्मों जन्मों तक
अन्तरित होते रहते हैं । इसी आधार पर प्रत्येक व्यक्ति का स्वभाव भिन्न होता है ।
जिस प्रकार व्यक्ति के स्वप्न की दशा में व्यक्ति की निद्रा-शक्ति, जो कि माया का व्यष्टि स्वरूप है, वह स्वप्न का प्रक्षेपण करती है और
प्रक्षेपित की जाने वाला विषय व्यक्ति की संचित वासनायें होती हैं । समष्टि के
विचार में यह जगत् भी ईश्वर अर्थात् माया-सहित-ब्रम्ह का स्वप्न है जिसमें स्वप्नलोक
अर्थात् जगत् का प्रक्षेपण माया करती है और प्रक्षेपण का विषय समष्टि-जीवों के
संचित कर्म-फल होते हैं । यही इस माया कल्पित जगत् का चित्र है । ......क्रमश:
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