मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 30
पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 30 व्यष्टि स्थूल-शरीर के प्रत्येक अंग के
लिये एक देवता को बताया जाता है । जिसका अभिप्राय होता है, व्यष्टि के उस अंग के लिये, समष्टि का शासक सिद्धान्त, वह देवता एक प्रतिनिधि रूप है । यथा, व्यष्टि की चक्क्षु ज्ञानेन्द्रिय है, और उसके समष्टि का प्रतिनिधित्व करने वाले देवता सूर्य हैं । छान्दोग्य
उपनिषद में सप्तांग
विराट देवता का वर्णन दिया गया है । उस सप्तांग विराट देवता की चक्क्षु के रूप में
सूर्य को बताया गया है । उपरोक्त अभिव्यक्ति सूचक है कि प्रत्येक व्यष्टि जीव को
विचार करना चाहिये कि वह समष्टि का अंग मात्र है । प्रत्येक व्यष्टि समष्टि का एक
प्रतिनिधि है । कंचिद यदि व्यक्ति को उपरोक्त कथित दृष्टिकोण ग्राह्य हो जाय तो, ऐसी दशा
में उसे अहंकार का मिथ्यात्व स्वत: स्पष्ट हो जा सकता है । अहंकार की
शास्त्र सदैव निन्दा करते हैं । सत्य स्थिति यही है कि किसी भी व्यक्ति के विचार
में, उसका अहंकार ही उसका सर्वाधिक पतन करने में समर्थ होता
है । ...........क्रमश:
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