मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 11


पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 11 ज्ञान की दशा का अर्थ है अपने शुद्ध चैतन्य को, जो कि आत्मा है, अपना परिचय जानते हुये जीवन यापन करना है । शुद्ध चैतन्य को अपना परिचय मानना ही अपने अहंकार स्वरूप को मिथ्या करार करना है । शुद्ध सदैव आश्रयदाता है । मिथ्या सदैव आलम्बन है । विडम्बना माया सृजित है । विडम्बना सत्य बन गयी है । व्यवहार का सत्य अहंकार है । सत्य शुद्ध लुप्त हो गया है । इस क्षवि को पहचानना ही अपनी भूल को पहचानना है । जब व्यक्ति भूल को जानेगा तभी सुधार को अग्रसर होगा । .........क्रमश:

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