मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 9
पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 9 मस्तिष्क आत्म-अनुभूति में लीन हो जाय यह अपेक्षित दशा है । यह उपलब्धि
सर्वोच्च है । यह आनन्द स्वरूप है । वृहदारण्यक उपनिषद में उपदेश है कि समस्त
सान्सारिक अनुभवगम्य वासना वृत्तियों के सुख केवल आत्मानन्द का आंशिक निरूपण करते
है । आनन्द केवल आत्मस्वरूप है । इसके व्यतिरिक्त कोई दूसरा आनन्द नहीं है ।
आत्मस्वरूप का अज्ञानी व्यक्ति किसी काल विषेस में किसी परिस्थिति विषेस में
एन्द्रिक वासना वृत्तियों से जिस अनुभवगम्य सुख की अनुभूति करता है, वह आत्मानन्द का ही सुख होता है, जिसे कि अज्ञानी वासना सुख मान कर अनुभव
करता है । ज्ञान की दशा में आनन्द उस व्यक्ति का स्वरूप हो जाता है । बडे बडे धनी, बडे बडे प्रशाशनिक पदों के धारक व्यक्ति, बडे बडे राज नेता
एक एकान्त में बैठे ज्ञानी संत के यहाँ क्या पाने जाते हैं ? उस संत के पास तो कोई सांसारिक वैभव नहीं है, परन्तु उसके पास है, उसका आनन्द स्वरूप, उसका ज्ञान जो कि सर्वोच्च है...........क्रमश:
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