मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 22
पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 22 मस्तिष्क के क्रिया सम्पादन के आधार पर इसके चार प्रभागो नामत: मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार का उल्लेख
पूर्व में किया गया है । उपरोक्त में विवेक को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है
। इसका विश्लेषण इस प्रकार है । व्यक्ति जन्म से व्यवहारिक जीवन का भोग करता है जो
कि अहंकार पोषित जीवन होता है । उपरोक्त के विपरीत उच्चतर प्रकृति के आश्रय का
जीवन है । यह मुक्त दशा का जीवन है । इस जीवन को तप द्वारा पाया जा सकता है ।
उपरोक्त वर्णित दोनो जीवन स्वरूपों के मध्य जो दूरी है, वह विवेक के द्वारा ही पार की जा सकती है । कैसे ? व्यवहारिक जीवन की परिस्थितियाँ और पारमार्थिक जीवन की परिस्थितियों में
वाँक्षनाओं का भेद है । व्यक्ति एक है । मस्तिष्क एक है । जो व्यवहारिक जीवन के
लिये ग्राह्य है उसे पारमार्थिक जीवन के लिये त्याज्य बताया जाता है । इसलिये
व्यवहारिक जीवन में जीवन जीते हुये जब व्यक्ति को पारमार्थिक को अंतरण करना है तो विवेक
के बल से ही वह त्याज्य बताये जाने वाले को त्याग सकेगा अन्यथा व्यवहारिक जीवन के
आलोक से तो वह उसके लिये ग्राह्य की श्रेणी का होता है । इसलिये नैतिक उत्थान के
प्रकरणों के विचार में विवेक सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है । ......क्रमश:
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