मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 25
पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 25 जड को न ही अपना ज्ञान
है और न ही दूसरे का ज्ञान है । चेतन को अपना भी ज्ञान है और दूसरे का भी ज्ञान है
। ऐसा क्यों होता है ? क्योंकि कि चैतन्य ज्ञानस्वरूप है । मनुष्य के
मस्तिष्क में चैतन्य की दो क्षवियाँ उपलब्ध हैं, जैसा कि पूर्व के लेखों
में भिज्ञ कराया गया है । पहली क्षवि जड मस्तिष्क को चेतनवद् व्यवहार करा रही है ।
यह उसका अहंकार रूप है । दूसरी क्षवि किसी व्यवहार में सम्मलित नहीं है
अपितु मस्तिष्क में गति कर रहीं वृत्तियों की साक्षी मात्र है । पहली क्षवि माया
का क्षेत्र है । दूसरी क्षवि पारमार्थिक क्षेत्र है । जो व्यक्ति उपरोक्त दोनो
क्षवियों के भेद को चिन्हित करने में सफल है, वह ज्ञानी है । जो
मनुष्य अपने जीवन को पहले क्षवि के आश्रय से यापन कर रहा है वह परिच्छिन्न है । जो
मनुष्य दूसरी क्षवि के आश्रय से जीवन यापन कर रहा है वह मुक्त है । जो मनुष्य पहले
क्षवि के आश्रय पर है वह जीवन-मृत्यु के चक्र में है । जो मनुष्य मुक्त है उसका
मोक्ष है । ...........क्रमश:
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