मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 24


पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 24 जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु अपरिहार्य है । जिसका प्रारम्भ है उसका अन्त है । समस्त परिवर्तन काल की सीमा में हैं । काल माया का क्षेत्र है । कालातीत पारमार्थिक है । पारमार्थिक किसी भी परिवर्तन से परे है । पारमार्थिक त्रिकालिक सत्य है । उपरोक्त कथित को मस्तिष्क के विवेक में स्थिर करना यह विवेक के आधार पर जीवन यापन करने वाले पुरुष का कर्तव्य है लक्ष्य है । मनुष्य का व्यवहारिक जीवन उसके स्थूल-सूक्ष्म-कारण शरीर के आश्रय का जीवन है । उपरोक्त व्यवहार, काल की सीमा का व्यवहारिक जीवन है । निश्चय ही वह माया के क्षेत्र का जीवन है । इसलिये वह सत्य आधार नहीं है । व्यवहारिक जीवन मिथ्या है । भ्रान्ति पर आश्रित है । इसलिये मृत्यु है, भय है, असुरक्षा है । पारमार्थिक आश्रय नित्य है । अमृत है । वहाँ कोई जन्म नहीं है । वहाँ कोई मृत्यु नहीं है । वह शान्त है । वह आनन्द है । ...........क्रमश:

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