मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 20
पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 20 सन्सार अर्थात् परिच्छिन्नता का कारण अज्ञान निर्धारित किया जाता है ।
अज्ञान अर्थात् अपंने स्वरूप का अज्ञान है । स्वरूप अर्थात् आत्मस्वरूप का अज्ञान
है । तो विद्वान आत्मज्ञानी आचार्य आदि-शंकर उपरोक्त कथित परिच्छिन्नता का निवारण
ज्ञान द्वारा सम्भव बताते हैं । ज्ञान अर्थात् अपने स्वरूप का ज्ञान है । स्वरूप
अर्थात् आत्मस्वरूप है । आत्मस्वरूप ब्रम्हस्वरूप है । आत्मस्वरूप अनन्त ब्रम्ह है
। अनन्त ब्रम्ह स्वरूप आनन्द-स्वरूप है । ब्रम्हस्वरूप ज्ञान स्वरूप है । तो यह
चेतन जीव परिच्छिन्न कैसे है ? उत्तर विदित है कि उसे अपने स्वरूप का
ज्ञान नहीं है । उपरोक्त दोनो भिन्न स्थितियाँ, अर्थात् ज्ञान-स्वरूप-आत्मा की उपस्थिति और
उसका अज्ञान, कैसे एक ही स्थल पर प्रभावी हैं ? विद्वान आत्मज्ञानी आचार्य आदि-शंकर उत्तर बताते हुये कहते हैं कि, इसलिये कि उपरोक्त में से एक अर्थात् उसका आत्मस्वरूप सत्य है और दूसरा
परिच्छिन्नता जो कि अज्ञान है भ्रम है । ऐसा कैसे सम्भव होता है ? उत्तर है, माया की अद्भुद लीला के फल से है ।.........क्रमश:
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