मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 16
पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 16 पारमार्थिक सत्य त्रिकालिक सत्य है । जगत् के प्रत्येक अवयव काल की सीमा
से बंधे है, आकाश द्वारा सीमित हैं । इसलिये जगत् के
किसी भी घटक के आलम्ब पर कभी भी किसी भी दशा में स्थायी निश्कर्ष सम्भव नहीं हो
सकते है । यही कारण है कि सन्सार के जीव को स्थिरता नहीं मिलती है । वह असुरक्षा
की अनुभूति करता है । परन्तु इस असुरक्षा का निराकरण उसे नहीं मिलता है । जो आधार
स्वयं अ-स्थिर है वह दूसरे को स्थिर आलम्ब कैसे पोषित कर सकता है । इसलिये जब तक
व्यक्ति पारमार्थिक सत्य का आधार नहीं ग्रहण करता है, तब तक उसकी परिच्छिन्नता का निवारण सम्भव नहीं हो सकता है, क्योंकि अपूर्ण किसी भी परिवर्तन द्वारा पूर्ण बन ही नहीं सकता है ।
इसलिये ही आत्मस्वरूप जो कि सदैव पूर्ण है का अवलम्ब ही, परिच्छिन्नता से निवृत्ति के लिये, असुरक्षा से मुक्ति के लिये, भय से अभय की स्थिति के प्राप्ति के लिये, एक मात्र उपाय है, यही शास्त्र का उपदेश है । ..........क्रमश:
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