मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 21


पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 21 आत्मा की दो प्रकृतियों का उल्लेख शास्त्रों में है । एक निम्नतर प्रकृति है । यह व्यवहारिक जगत् की प्रयोज्य प्रकृति है । इसे अहंकार का नाम दिया जाता है । इसमें राग-द्वेष-ईर्ष्या आदि विद्यमान पाये जाते हैं । इसमें असुरक्षा अपूर्णता प्रधान अवयव हैं । इसमें व्यक्ति कर्ता भोक्ता है । यह जन्म-मृत्यु के चक्र का धारक है । दूसरी उच्चतर प्रकृति है । इसे विरला कोई ही अंगीकार कर पाता है । यह शाश्वत् आत्मा के सत्यत्व पर आधारित है । यह मुक्त दशा है । यह जन्म मृत्यु से परे की दशा है । यह व्यक्ति के स्वतन्त्र चुनाव का विषय है कि वह किस पथ को अंगीकार करता है........क्रमश:

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