मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 28


पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 28 जगत् में सम्पादित हो रही प्रत्येक और समस्त गतियाँ प्रकृति द्वारा सम्भव हो रही हैं । यह माया सृष्टि का नियम है, संचालन है, विधान है । परन्तु यह भी सत्य है कि किसी भी सामान्य जीव को उपरोक्त वर्णित नियम ना ही सहज़ रूप से ग्राह्य है और नहीं उसे सहज़ रूप से मान्य है । प्रश्न उठेगा क्यों ? उत्तर है, यह माया सृष्टि है । माया का प्रत्येक सम्पादन अद्भुद है । इसीलिये माया सर्व जगत् को ऐसे ही नचाती है जैसे मर्कट को मनुष्य नचाता है । अन्यथा तो मनुष्य अपने को तो इतना बुद्धिमान समझता है, है भी, कि उसका सोचना तो यही है कि सब कुछ जगत् में जो हो रहा है, वह मनुष्य ही करा रहा है । परन्तु विडम्बना यह है कि उपरोक्त दो अभिव्यक्तियों में से पहली ही सही है । क्या ? जगत् में सम्पादित हो रही प्रत्येक और समस्त गतियाँ प्रकृति द्वारा सम्भव हो रही हैं......क्रमश: 

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