मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 23
पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 23 चिरकालिक सत्य के आश्रय का जीवन ही स्थिर शान्त जीवन है । जीवन जब
परिवर्तनशील आश्रय के अवलम्ब पर होगा तब निश्चय ही उसमें अस्थिरता सदैव विद्यमान
है । इस जगत् के समस्त ज्ञात आश्रय काल की सीमा से बाधित हैं । इसलिये अनित्य हैं
। इसलिये ही जगत् के किसी भी आश्रय का फल अस्थिरता है । व्यक्ति जन्म से मृत्यु
पर्यन्त स्थिरता को खोजता है । परन्तु उसे नहीं मिलती है । क्योंकि प्रत्येक अवयव
परिवर्तन के अधीन है । इसलिये इस जगत् के आश्रय में स्थिरता असाध्य है । स्थिरता
केवल अपरिवर्तनीय सत्ता के आश्रय द्वारा ही सम्भव है । अपरिवर्तनीय सत्ता केवल एक
है । वह व्यक्ति का स्वयं अपना स्वरूप है । व्यक्ति की अपनी आत्मा है । यह आत्मा
ही उसका अपना स्वरूप है । जब व्यक्ति अपने स्वरूप को जान लेगा, उस स्वरूप में स्थापित हो जायेगा तब वह शान्त दशा का भोग
करेगा.........क्रमश:
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें