मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 19


पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 19 कंचिद किसी बाल्टी में जल खुले स्थान में रखा है, और ऊपर आकाश में सूर्य चमक रहा है, तो सूर्य का प्रतिबिम्ब बाल्टी के जल में मिलना या प्रगट होना यह सामान्य व्यवहार है । परन्तु कंचिद प्रतिबिम्ब नहीं मिल रहा है, तो इसके दो कारण हो सकते हैं, एक कि बाल्टी का जल गन्दा है, दो कि बाल्टी के जल में कम्पन उठ रहे हैं । उपरोक्त विवरण दृष्टान्त है । विचार एक कुन्द मस्तिष्क का करना है । कुन्द अर्थात् जिसमें ब्रम्ह विचार की शिक्षा प्रेवेष नहीं कर पाती है । इस दोष के भी दो कारण निर्धारित किये जाते हैं । एक कि मस्तिष्क पहले से दूषित वासना वृत्तियों से तृप्त है, दो कि मस्तिष्क में वासना वृत्तियों की गति बहुतायत हैं । उपरोक्तानुसार दूषित मस्तिष्क के उपचार की आवश्यकता विचारणीय हो जाती है, क्योंकि वासना-वृत्तियां व्यक्ति के उत्थान में बाधक होती हैं, और ब्रम्ह विचार व्यक्ति के उत्थान को उन्मुख होता है । उपचार के विचार में पहली त्रुटि अर्थात् संचित वासना-वृत्तियों के प्रदूषण को क्षीण करने के लिये कर्म-काण्ड अर्थात् वैदिक यज्ञ-विधान द्वारा मस्तिष्क स्वच्छ और पुष्ट बनता है । दूसरी बाधा अर्थात् मस्तिष्क जिसमें वासना वृत्तियों की गति बहुतायत हैं, उसके निवारण के लिये विभिन्न उपासनाओं के अभ्यास द्वारा मस्तिष्क व्यष्टि की संकीर्णता से ऊपर उठ समष्टि के विचार में सक्षम बनता है । उपरोक्त दोनो शोध के अभ्यास द्वारा व्यक्ति का मस्तिष्क उन्नत कर ब्रम्ह-विचार ज्ञान के लिये योग्य पात्र बनता है..........क्रमश:    

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