मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 17
पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 17 व्यक्ति को जीवन-मुक्ति चाहिये अथवा व्यक्ति को सान्सारिक त्रास भोग
चाहियें, यह चुनना उसका स्वतन्त्र अधिकार है । भले
ही आम व्यक्ति शायद इस चुनाव की स्वतन्त्रता को जानता भी नहीं है, और अज्ञान की स्थिति में ही वह सान्सारिक त्रास-भोग के क्षेत्र में है ।
उपरोक्त वर्णित आम शब्द में, पढे-लिखे अपने को शिक्षा-विशारद कहनेवाले
व्यक्ति भी सम्मलित हैं । मैं कौन हूँ ? यह आधार-भूत प्रश्न जिसके हृदय में उठेगा
वही व्यक्ति सत्य को खोजेगा, वही ज्ञान-यात्रा को उन्मुख होगा, अन्यथा की स्थिति में वह शिशु अवस्था में खेलने में व्यस्त होगा, युवा होने पर तरुणी में व्यस्त होगा. प्रौढ होने पर सान्सारिक त्रास-भोग
में लिप्त होगा, वृद्ध होने पर चिन्ता-भोग में लिप्त होगा
फिर यम-धर्म-राजा से उसकी मुलाकात होगी और यात्रा पूर्ण है । उपरोक्त वर्णित
प्रश्न मैं कौन हूँ ? जिसके हृदय में बारम्बार उठेगा-कौंदेगा
वह ही, जब प्रारभ्य-वश अथवा संचित-संस्कार-वश
समुचित सुयोग्य सत्-गुरू-संग को प्राप्त होगा, समुचित शिक्षा पद्धति को प्राप्त होगा, समुचित प्रयत्न में संलग्न होगा, यथा-वांक्षित तप करेगा तब वह ज्ञान को
उन्मुख होगा, जिसकी पराकाष्ठा है, अहम् ब्रम्हास्मि और जिसका फल मोक्ष है ।...........क्रमश:
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