मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 8


पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 8 मस्तिष्क को आत्मा की वृत्ति बोध यह पहला सन्सकार है । जिस पल उसे आत्मा का वृत्ति बोध हो जाता है, इस वृत्ति बोध से पूर्व के समस्त प्रयत्न स्वयं ही निरर्थक सिद्ध हो जाते हैं । आत्मा का वृत्ति बोध केवल शास्त्र प्रमाण द्वारा ही सम्भव हो सकता है । शास्त्र का ज्ञान गुरू-शिष्य परम्परा द्वारा इस वैदिक सन्स्कृति के देश में अनादि-काल से सतत् चलता आ रहा है । इसका प्रमाण क्या है ? यह कि, कि यह ज्ञान आज के तिथि में भी विद्यमान है । आदि गुरू नारायण हैं । स्वयं विष्णु भगवान ही प्रथम गुरू हैं जिन्होने वेदों का उपदेश ब्रम्हा जी को किया और तत्पश्चात् उन्हे सृष्टि की रचना का आदेश किया है । आत्मा जो कि परमात्मा है, सर्वकालिक सत्य है । समस्त विस्तार उसी आत्मा के ऊपर नाम-रूप का आरोपण मात्र है । आत्मा अनन्त सत्ता है । आत्मा शाश्वत् सत्ता है । आत्मा अद्वयम् सत्ता है । आत्मा असंग सत्ता है । आत्मा का वृत्ति बोध अहम् ब्रम्हास्मि है । प्रत्येक मनुष्य इस आत्मा के आलम्बन पर ही चेतन जीव है । प्रमाता-कर्ता-भोक्ता मनुष्य अहंकार के क्षेत्र का है । वह माया सृष्टि का अंग है । उसका जन्म है । उसकी मृत्यु है । आत्मा तो चिर-कालिक सत्य है । समय और आकाश तो उसे स्पर्ष भी नहीं कर सकते हैं...........क्रमश: 

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