मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 18
पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 18 व्यष्टि सदैव समष्टि का अन्श है । प्रत्येक स्थूल जीव-शरीर विराट-देवता
का अन्श है । विराट-देवता समष्टि-स्थूल का नाम है । प्रत्येक व्यष्टि सूक्ष्म-शरीर
हिरण्यगर्भ का अन्श है । हिरण्यगर्भ समष्टि सूक्ष्म-शरीर-देवता का नाम है ।
प्रत्येक व्यष्टि कारण शरीर ईश्वर का अन्श है । ईश्वर समष्टि कारण-शरीर देवता का
नाम है । चैतन्य के विचार में व्यष्टि स्थूल को विश्वा का नाम दिया गया है ।
समष्टि स्थूल को विराट-देवता का नाम दिया गया है । व्यष्टि-सूक्ष्म-चैतन्य को
तैजसा का नाम दिया गया है । समष्टि-सूक्ष्म-देवता को हिरण्यगर्भ का नाम दिया गया
है । हिरण्यगर्भ को पुराणों में ब्रम्हाजी भी नाम दिया गया है
। व्यष्टि-कारण-अवस्था-चैतन्य को प्राज्ञा नाम दिया गया है । चैतन्य के विचार में
समष्टि-कारण ईश्वर हैं जिन्हे विष्णु-भगवान भी कहा जाता है । समष्टि का
प्रादुर्भाव पहले हुआ और व्यष्टि की उत्पत्ति समष्टि से हुई है । इसलिये व्यक्ति
के मानसिक क्षमता का विस्तार करने के लिये समस्त उपासनाओं में समष्टि-देवताओं की
उपासनाओं
का उपदेश किया गया है । व्यष्टि किसी भी दशा में समष्टि पर विजय नहीं कर सकता है ।
समष्टि सदैव शासक है । .........क्रमश:
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें