मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 7


पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 7 मस्तिष्क को पारमार्थिक सत्य की वृत्ति बोध कराने के लिये शास्त्र मस्तिष्क की ग्राह्यता क्षेत्र के समस्त जगत् को मिथ्या करार करते हैं, जिज्ञासु की स्थूल-सूक्ष्म-कारण-शरीर को मिथ्या करार करते हैं, जिज्ञासु के मस्तिष्क को मिथ्या करार करते है । यह शिक्षण विधा है । जब जिज्ञासु को आत्मा का वृत्ति बोध अहम् ब्रम्हास्मि हो जाता है, तब उस वृत्ति बोध का तत्काल फल यह होता है कि वह ज्ञान-जिज्ञासु ही अब ज्ञानी है । इस ज्ञान का पहला फल उसको प्राप्त होता है कि उस ज्ञानी की दृष्टि समस्त जगत् को जिसे शिक्षण-काल में उसे मिथ्या बताया गया, वह जगत् अब उसे दीखता है - ब्रम्ह + नाम-रूप, उसको अपनी शरीर दीखती है - ब्रम्ह + नाम-रूप, उसको अपना मस्तिष्क दीखता है - ब्रम्ह + नाम-रूप, यहाँ तक की उस मस्तिष्क में गति कर रही आत्म-वृत्ति अहम् ब्रम्हास्मि उसे ब्रम्ह-दर्शन के रूप में दीखती है । यह आत्म-ज्ञान कितना शाश्वत् व्यापक आनन्द स्वरूप है । इस आत्मास्वरूप के अज्ञांन के फल से ही जीव सन्सारी है, अपूर्णता, असुरक्षा के त्रास का भोक्ता जीव है..........क्रमश:

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