मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 26


पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 26 ब्रम्ह कार्य-कारण-विलक्षण है । शुद्ध शाश्वत् चैतन्य असंग है । कार्य-कारण जहाँ है वहा माया है काल है । ब्रम्ह कालातीत है । जगत् कंचिद कार्य है तो ब्रम्ह कारण है । यह माया सहित ब्रम्ह स्वरूप है जो जगत् का कारण है । ब्रम्ह उपादान कारण है और माया निमित्त कारण है । ब्रम्ह और माया भिन्न नहीं हैं । उपरोक्त समस्त अभिव्यक्तियाँ श्रुतियों से उद्घृत की गई है । श्रुतियों मे उपरोक्त वर्णित सभी अभिव्यक्तियाँ एक ही स्थल पर नहीं वर्णित हैं । परन्तु प्रकरण को ग्राह्य बनाने के लिये उन्हे एक ही स्थल पर उपस्थित किया जा रहा है । सत्य अद्वैत है । द्वैत मिथ्या है । द्वैत दर्शन ही सन्सार है । लोक-व्यवहार है । माया का क्षेत्र है । द्वैत सदैव भयकारक है । अद्वैत शान्त आनन्द है । उपरोक्त समस्त कथन जब मस्तिष्क ग्राह्य बना सकेगा तभी वह कार्य-कारण-ब्रम्ह-स्वरूप का ज्ञान ग्रहण कर सकेगा और ज्ञान सदैव विषय है ज्ञाता है अहम् ब्रम्हास्मि की स्थिति है । ...........क्रमश:

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