मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 4
पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 4 मस्तिष्क में विद्यमान
चैतन्य की दूसरी क्षवि के वृत्ति की खोज करने के लिये शास्त्रों की शरण लेते हैं ।
शास्त्र इस चैतन्य के सम्बन्ध में उपदेश करते हैं कि यह चैतन्य अदृष्य है
जिसका अर्थ लिया जाता है कि यह उपलब्ध प्रत्येक पाँच ज्ञानेन्द्रियों की ग्राह्यता
से परे है । शास्त्र इस चैतन्य के सम्बन्ध में आगे उपदेश करते हैं कि अव्यवहार्यम्
है जिसका अर्थ लिया जाता है कि यह चैतन्य किसी व्यवहार में सम्मलित नहीं होता है ।
शास्त्र इस चैतन्य के विषय में आगे उपदेश करते हैं कि अग्राह्यम् है जिसका
अर्थ लिया जाता है कि मस्तिष्क अर्थात् चैतन्य की क्षवि एक की कृपा से कार्यकारी
मस्तिष्क इस दूसरे चैतन्य क्षवि की वृत्ति-ज्ञान-बोध नहीं कर सकता है । शास्त्र इस
चैतन्य के विषय में आगे उपदेश करते हैं कि अलक्षणम् है जिसका अर्थ लिया
जाता है कि इसके कोई धर्म नहीं हैं । शास्त्र इस चैतन्य के विषय में आगे उपदेश
करते हैं कि अचिन्त्यम् है जिसका अर्थ लिया जाता है कि मस्तिष्क के पास कोई
पूर्व की स्मृति के संचय के आश्रय से भी इसकी वृत्ति-ज्ञान-बोध नहीं किया जा सकता
है । शास्त्र इस चैतन्य के विषय में आगे उपदेश करते हैं कि अ-उपदेश्यम् है
जिसका अर्थ लिया जाता है कि गुरू इसके स्वरूप का कोई उपदेश भी नहीं कर सकते हैं ।
उपरोक्त समस्त विवरण से यह तो स्पष्ट है कि यह चैतन्य अति-विलक्षण है, परन्तु इसे ग्राह्य बनाना लक्ष्य है । इसलिये शास्त्रों में खोज को सतत् रखते
हैं............क्रमश:
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