मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 14


पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 14 ज्ञान प्राप्ति काल में साधन-चतुष्टय की अनुसंशा व्यक्ति को व्यवहारिक जीवन से पारमार्थिक सत्य के जीवन में अंतरण के लिये प्रतिपादित की गई हैं । सभी अपेक्षित परिवर्तनों का आश्रय एक मस्तिष्क ही है । वह मस्तिष्क वर्तमान में अहंकार के आश्रय से इस लोकव्यवहार के जगत् में लीन है । उसे असंग निराकार अद्वयम् चैतन्य स्वरूप के आश्रय के लोक में अंतरित करने का लक्ष्य निरधारित है । समस्त सम्पादन वर्तमान का भी और भविष्य का भी दोनो एक एकल मस्तिष्क के आश्रय पर है । इस आलोक में मनोनिग्रह सर्वाधिक महत्वपूर्ण है । मस्तिष्क का सन्सकार इस मनोनिग्रह का ही पर्याय है । सभी कुछ अभ्यास से ही सम्भव होता है । अभ्यास कौन करेगा ? जो मुमुक्षु होगा वह प्रयत्न करेगा । मुमुक्षु कौन होगा ? जिसे मायालोक से विरक्ति होगी । इस प्रकार साधनचतुष्टय, वैराग्य, विवेक और मुमुक्षु यह सभी सम्बद्ध प्रकरण है, ज्ञान यात्रा है.........क्रमश: 

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