मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 3
पद-परिचय-सोपान मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 3 मस्तिष्क में विद्यमान चैतन्य की क्षवि एक का स्पष्ट और विलक्षण स्मरण रखते हुये , यात्रा के चरण तीन में प्रवेष करते है । मस्तिष्क की क्रिया पद्धति की ओर ध्यान निवेदित है । मस्तिष्क चैतन्य की क्षवि एक के फल से प्रमाता स्वरूप में क्रियाकारी दशा में है । इस मस्तिष्क में घट-वृत्ति के फल से घट-स्वरूप का ज्ञान बोध होता है , और पट-वृत्ति के फल से उसे पट-रूप का ज्ञान बोध होता है , इसी क्रम का विस्तार करते हुये उपरोक्त कथित प्रमाता मस्तिष्क को अब मस्तिष्क में विद्यमान चैतन्य की क्षवि दो का ज्ञान-बोध करना है , तो कैसे होगा ? उत्तर होगा कि चैतन्य की क्षवि-दो के वृत्ति-बोध द्वारा सम्भव होगा , उचित उत्तर है । अब नया प्रश्न सृजित होता है कि चैतन्य की क्षवि दो तो निराकार है इसलिये इसकी वृत्ति क्या है ? इस प्रश्न को समझने पर्यन्त ही मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 3 की इति है | ....... क्रमश: