मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 2
पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 2 मस्तिष्क में विद्यमान चैतन्य की दोनो
क्षवियों को स्पष्ट और विलक्षण दो स्वरूपों में अनुभव करते हुये, लक्ष्य भेद के चरण दो में प्रवेष कर रहें हैं । यात्रा में पहले हम
उपरोक्त कथित दो क्षवियों में से पहले, क्षवि एक का विस्तृत अवलोकन करते हैं ।
यह क्षवि मस्तिष्क के तीन अवस्थाओं यथा जागृत-स्वप्न-सुशुप्ति प्रत्येक तीन में
विद्यमान और प्रभावी रूप से क्रियाशील होती है । जागृत-दशा में इसके प्रभाव से
मस्तिष्क बाह्य जगत् के स्थूल नाम-रूप-कार्य के साथ व्यवहार करता है, स्वप्न-दशा में इसके प्रभाव से मस्तिष्क अपने ही अन्दर विद्यमान वासना
वृत्तियों के साथ व्यवहार करता है, और सुशुप्ति दशा में मस्तिष्क स्वयं, चूँकी लय की दशा में होता है, इसलिये इसका कोई व्यवहार नहीं होता है, परन्तु विचारगत्-चैतन्य विद्यमान और क्रियाशील दशा में रहता है । चैतन्य
की पहली क्षवि को, यथा वर्णित उपरोक्त को आत्मसात् करने
पर्यन्त ही, चरण 2 की इति है ।...........क्रमश:
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