निरुपाधिक-प्रेम
पद-परिचय-सोपान
निरुपाधिक-प्रेम शास्त्रॉ का स्पष्ट आदेश है कि, प्रत्येक व्यक्ति केवल अपनी आत्मा से ही
प्रेम करता है । समस्त अनात्मन के प्रति प्रेम केवल व्यक्ति दिखावा के लिये करता
है । दिखावा किसी अन्य को भ्रम में रखने के लिये करता है । अनात्मन के प्रति
व्यक्ति का प्रेम किसी विशेष परिस्थिति अथवा किसी अन्य प्रयोजन की पूर्ति हेतु
करता है । उपरोक्त के विपरीत व्यक्ति का अपनी आत्मा के प्रति प्रेम सर्वकालिक होता
है, प्रत्येक परिस्थिति में होता है । अनात्मन के प्रति प्रेम का दिखावा भी
व्यक्ति अपनी आत्मा के प्रति प्रेम के लिये ही करता है । ..... क्रमश:
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