ग्रहण-क्षमता


पद-परिचय-सोपान
ग्रहण-क्षमता मस्तिष्क को व्यवहार, कर्म-योग, उपासन-योग, ज्ञान-योग, केन्द्रीकरण अभ्यास, के पथ से आत्मा के वृत्ति-बोध पर्यन्त विकास की स्थिति को ग्रहण करने के लिये तत्पर बनाना है । उपरोक्त वर्णित समस्त और प्रत्येक को, सतत् अभ्यास करते हुये, उपरोक्त वर्णित समस्त और प्रत्येक का नियमित संचालन, मस्तिष्क की आम क्रिया-पद्धति बन जाने की दशा, कुशल-संलग्नता है । निष्ठा और तप अनिवार्य वाँक्षनायें हैं । लक्षित-उपलब्धि आत्म-ज्ञान है । उपरोक्त समस्त मस्तिष्क के नियंत्रित उपयोग और विस्तृत-दक्षता के आश्रय पर है । ..... क्रमश:

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