असंग-चैतन्य
पद-परिचय-सोपान
असंग-चैतन्य व्यक्ति का परिचय, उसका स्व, उसका चैतन्य है, न कि उसकी जडता है । चैतन्य, आत्मा है, फिरभी वह
स्थूल-सूक्ष्म-कारण-शरीर समुदाय से भिन्न है, और उपरोक्त से असंग है, विलक्षण है । स्थूल-सूक्ष्म-कारण-शरीर की चेतन-अभिव्यक्ति भ्रान्ति है, अहंकार है । असंग-चैतन्य की, स्व की अनुभूति, ज्ञान की दशा है । उपरोक्त वर्णित अनुभूति, माया-शक्ति द्वारा बाधित है । उपरोक्त वर्णित माया-बाधित अनुभूति की
ग्राह्यता मोक्ष-पुरुषार्थ है । ..... क्रमश:
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