अज्ञान-प्रादुर्भाव


पद-परिचय-सोपान
अज्ञान-प्रादुर्भाव अज्ञान सदैव अनादिकालीन ही होता है । परन्तु अनादिकालीन होते हुये भी अज्ञान का अन्त होता है । ज्ञान की दशा ही अज्ञान का अन्त है । इसलिये अज्ञान के प्रादुर्भाव का विचार आधारविहीन है । व्यक्ति कार्य-कारण-सृष्टि की ही उत्पत्ति है । व्यक्ति यदि माया-उत्पत्ति का कार्य है, तो कारण उसके संचित-कर्म-फलों का भोग बताया जायेगा । संचित-कर्म-फलों की उत्पत्ति की खोज की जायेगी तो उत्तर मिलेगा, अज्ञान है । उपरोक्त खोज को करते हुये, पीछे चलते जाइये, अनन्त तक चले जाने पर भी उसकी उत्पत्ति नहीं मिलेगी । ऐसा क्यों ? क्योंकि वह अनादि-कालीन है । इसलिये अज्ञान की उत्पत्ति का शोध सार्थक प्रयत्न नहीं है । अज्ञान का निवारण सार्थक विचार है । प्रयत्न है । अज्ञान का एक बार निवारण का अर्थ है कि वह सदैव के लिये समाप्त हो जाता है । ....... क्रमश:

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

साधन-चतुष्टय-सम्पत्ति

चिदाभास

निषिद्ध-कर्म