मनोवेग-जनित पीडाओं से मुक्ति


पद-परिचय-सोपान
मनोवेग-जनित पीडाओं से मुक्ति मनोवेग व्यक्ति को मानसिक पीडा कारक होते हैं । मनोवेग अहंकार की सहज देन है । ज्ञान की दशा, अहंकार का निषेध है । उपरोक्त विश्लेषण द्वारा सहज निश्कर्ष निकलता है कि ज्ञानी के लिये मनोवेग केवल वस्तु-रूप दृष्य मात्र रह जाते हैं । जबकि अहंकार पोषित व्यक्ति के लिये मनोवेगों का सहज सम्बन्ध उसके स्व से है । मनोवेग ही समस्त त्रासदाओं का मूल होते हैं । व्यक्ति की परिच्छिन्नता की अनुभूति, उसके अज्ञान मात्र से है । व्यक्ति का मौलिक स्वरूप तो अनन्त है । व्यापक है । अनन्त स्वरूप आत्मा का धारक व्यक्ति, जब एक शरीर विषेस को अपना परिचय बना लेता है, तो परिच्छिन्नता तो उसने स्वयं ओढ ली है, न कि प्रकृति प्रदत्त है । व्यक्ति द्वारा अपनी व्यापक आत्मा का स्वरूप ज्ञान ही, उसकी अपनी परिच्छिनता का निवारण है, त्रासदाओं का समापन है, आनन्द-स्वरूप की स्थापना है । उपरोक्त समस्त मस्तिष्क की ग्राह्यता के अधीन है । ..... क्रमश:

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