व्याप्ति-ही-व्यापकता


पद-परिचय-सोपान
व्याप्ति-ही-व्यापकता आत्मा और ब्रम्ह एक ही तत्व के दो नाम हैं । वेद ब्रम्ह का उपदेश करते हुये, सत्-चित्-आनन्द बताते है । सत् जो कि जड-प्रपंचो के अस्तित्व के रूप में व्यक्त होता है, चित् जो कि जीव-प्रपंचों में चैतन्य के रूप में व्यक्त होता है, आनन्द जो कि अनन्त का पर्याय है, सर्वत्र जीव-जड में आवृत्त है । उपरोक्त कथित आवृत्त अंश ही, अज्ञान का अधिष्ठान है । आवृत्त अनन्तत्व के फल से ही भ्रान्ति जगत् और अहंकारी जीव दोनों सात्यवद् लोकव्यवहार में रत् हैं । उपरोक्त वर्णित तथ्यात्मक छवि ही माया-कल्पित जगत् का स्वरूप है । ..... क्रमश:

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