दृढ-स्थापना चरण 3
पद-परिचय-सोपान
दृढ-स्थापना चरण 3 स्व-स्वरूप-धारण अर्थात् ज्ञान, जब संकल्प-विकल्प की द्वंदात्मक परिधि से
मुक्त होकर दृढ-विश्वास की परिधि में प्रवेष करता है, तब उपरोक्त कथित दृढ-निश्चयात्मक ज्ञान की, व्यक्ति के स्वभाव के अंग-स्वरूप स्थापना की पारी आती है । व्यक्ति का
आचरण, उसके स्वभाव का निरूपण-स्वरूप में
अपेक्षित होता है । व्यक्ति का आचरण, ज्ञान की अभिव्यक्ति हो जाय, यह ज्ञान-की-दृढ-स्थापना-दशा है । यह प्रयत्नपूर्वक ही सम्भव हो सकती है
। इस दशा की प्राप्ति ही तीसरा चरण है । ..... क्रमश:
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