कार्य-कारण-क्यों
पद-परिचय-सोपान
कार्य-कारण-क्यों माया कल्पित जगत् का मिथ्यात्व ही कार्य-कारण की उत्पत्ति का केन्द्र है
। यदि कंचिद जगत् सत्य अस्तित्व होता तो, कोई कारण की खोज आवश्यक ही नहीं है ।
सत्य है, इस अभिव्यक्ति में कारण की खोज कहाँ आवश्यक
है ? कैसे आवश्यक है ? नहीं आवश्यक है, क्योंकि जो है वह सत्य है, तो कारण का कहाँ स्थान है । कारण की खोज ही तभी आवश्यक हो जाती है, जब जो अनुभव-गम्य है वह सत्य नहीं है, अपितु मिथ्या है ।
इस मिथ्या अनुभव-गम्य जगत् का कारण क्या है ? व्यक्ति का अज्ञान कारण है । पुन: प्रश्न
आयेगा, कि जगत् मिथ्या है तो, सत्य क्या है ? उत्तर है, अनुभव-कर्ता
व्यक्ति का स्वरूप उसकी आत्मा, सत्य है । कारण-कार्य का निवारण, अर्थात् अज्ञान का निवारण, कैसे सम्भव है ? उत्तर है, ज्ञान द्वारा अर्थात् अपने स्वरूप-बोध
द्वारा अर्थात् आत्म-ज्ञान द्वारा कार्य-कारण का निवारण है । क्यों ? इसलिये कि आत्मा-कार्य-कारण-विलक्षण है । ........ क्रमश:
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