असंगत्व


पद-परिचय-सोपान
असंगत्व पारलौकिक तत्व आत्मा के सम्बन्ध में कुछ भी व्यक्त करने के लिये, लौकिक व्यवहारिक शब्दों का प्रयोग किया जाता है, कतिपय धर्मों का आश्रय लिया जाता है । असंग शब्द भी लोकव्यवहार में प्रयोज्य, वस्तु-रूपात्मक जगत् के वस्तु-रूपों के धर्म को निरूपित करने में समर्थ पाया जाने वाला है । परन्तु संदर्भ-वश जब असंग शब्द का प्रयोग आत्मा के लिये किया जाता है, तब यह स्वयं ही प्रश्न-वाचक बन जाता है, क्योंकि आत्मा के संदर्भ में किसी धर्म का निषेध भी अति-वचनीयता है  । आत्मा को वेद, असंग-निराकार-निर्विकार उपदेश करते हैं । संग तो सजातीय में ही होता है । आत्मा का सजातीय कोई अन्य तत्व नहीं है । इसलिये असंग का उपदेश है । परन्तु आत्मा समस्त ज्ञान का आश्रय होते हुये भी वह किसी विशिष्ट-ज्ञान से सम्बद्ध नहीं है, इसलिये असंग का उपदेश आत्मा के लिये है । ....... क्रमश:     

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