भक्ति-योग
पद-परिचय-सोपान
भक्ति-योग सामान्यतया, व्यक्ति ईश्वर को अपनी सान्सारिक इच्छाओं की पूर्ति के उद्देष्य से ही
प्रेम करता है, यह मन्द भक्ति है । दूसरे अधिक मानसिक
रूप से विकसित लोग, ईश्वर को सुरक्षा, हर्ष, और शान्ति की प्राप्ति की कामना से प्रेम करते हैं, यह मध्यम भक्ति है । तीसरा सर्वोच्च स्तर
है, जिसमें कि व्यक्ति ईश्वर को अपनी आत्मा के रूप में ग्रहण करता है, यह उत्तम भक्ति है । भक्ति को, कंचिद सर्वोच्च लक्ष्य अर्थात्
आत्मा-ईश्वर-ऐक्यं प्राप्त करने के लिये, साधन के रूप में प्रयोग किया जाय, तब इसे भक्ति-योग कहा जाता है । इस प्रकार कर्म-भक्ती-योग, उपासन-भक्ति-योग, ज्ञान-भक्ति-योग यह तीन चरण हैं । .....
क्रमश:
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें