संकल्प-विकल्प-निवारण चरण 2
पद-परिचय-सोपान संकल्प-विकल्प-निवारण चरण 2 मनुष्य का मस्तिष्क ही उसका मित्र भी होता है और उसका शत्रु भी होता है । एक वृत्ति परम्परा जन्म से संचरित हो रही है । समय विषेस पर उपरोक्त कथित वृत्ति परम्परा को अनुपयुक्त पाये जाने पर , उसे निर्मूल कर , एक भिन्न वृत्ति की स्थापना का अवसर उपस्थित होता है । उपरोक्त कथित स्थिति में , पूर्व से व्यव्हृत-वृत्ति-परम्परा और नवीन प्रस्तावित वृत्ति के मध्य , एक परस्पर द्वंद की स्थिति , व्यक्ति के मस्तिष्क में क्रियाशील हो जाती है । उपरोक्त कथित द्वंद की स्थिति का , मानसिक-चिन्तन और विवेक की मध्यस्थता द्वारा , शमन करना ज्ञान प्रक्रिया का द्वितीय चरण है । ...... क्रमश: