आत्म-ज्ञान
पद-परिचय-सोपान
आत्म-ज्ञान
शास्त्र समस्त अनुभवगम्य जगत् को अनात्मन कह कर निषेध करते हैं । प्रश्न उत्पन्न
होता है कि, अनुभवगम्य से परे क्या है ? उत्तर है, स्वयं अनुभवकर्ता अनुभवातीत है ।
अनुभवकर्ता को बाह्य जगत् का अनुभव सम्भव है परन्तु स्वयं अपना अनुभव वह
अनुभवकर्ता नही कर सकता है । यह माया-कल्पित सृष्टि की मौलिक सीमा है । माया
सृष्टि की विलक्षणता है । पुन: प्रश्न सृजित होता है कि आत्म-ज्ञान क्या है ? प्रारम्भिक अवस्था में, अज्ञान के निवारण, को आत्म-ज्ञान के रूप में ग्रहण करना है । आत्मज्ञान सूक्ष्म-गूढ विषय
है । क्रमिक दीर्घ-कालीन शिक्षण द्वारा सम्भव होता है । ..... क्रमश:
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