उपासन-योग
पद-परिचय-सोपान
उपासन-योग
विद्वान-आचार्य आदि-शंकर इसे समाधि-योग कहते हैं । शास्त्रों के शिक्षण का
उद्देष्य व्यक्ति के मानसिक-विकास हेतु हैं । व्यक्ति का मस्तिष्क सूक्ष्म अवयव है
। व्यक्ति को अपने मस्तिष्क का साक्षात् सम्भव नहीं है । व्यक्ति की समस्त
ज्ञानेन्द्रियाँ मस्तिष्क के आश्रय द्वारा क्रियाशील हैं । उपरोक्त समस्त स्थिति
के विद्यमान रहते मनोनिग्रह अति-सूक्ष्म प्रयत्न है । उपासन-योग अर्थात् समाधि-योग
अर्थात् मनोनिग्रह अर्थात् सूक्ष्म ज्ञान की चेष्टा, उपरोक्त समस्त
पर्याय अभिव्यक्तियाँ हैं । व्यक्तित्व का विभाजन विभिन्न आधारों पर किया जाता है, यथा स्थूल-शरीर, सूक्ष्म-शरीर, कारण-शरीर, पंच-कोष-विवेक आदि, परन्तु वर्तमान विचाराधीन प्रकरण को ग्राह्य कराने के लिये
विद्वान-आचार्य आदि-शंकर व्यक्तित्व को तीन स्तर नामत: काया, वाक्, मस्तिष्क में करते हैं । उपरोक्त कथित
तीनो ही स्तरों के अनुशासन के लिये विस्तृत व्याख्या आगे के अंको में खण्डों में
प्रस्तुत करने का प्रयत्न है । ..... क्रमश:
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