कर्म-योग
पद-परिचय-सोपान
कर्म-योग
दो शब्दों, कर्म और योग की युति कर्म-योग है । कर्म
ही जीव की उत्पत्ति का निमित्त है । कर्म जो कि व्यक्ति को श्रेय: प्राप्ति में
सहायक होते हैं, उन्हे उत्तम कर्म कहा जाता है । मध्यम
कर्म, या तो श्रेय: प्राप्ति में सहायक नहीं
होते हैं अथवा आंशिक या अल्प सहायक होते हैं । अधम कर्म निषिद्ध कर्म होते हैं ।
अधम कर्म व्यक्ति के श्रेय: प्रयत्नों को क्षीण करने वाले होते हैं । उपरोक्त कथित
कर्म-श्रेणियों के आधार पर, समुचित कर्म को चयनित करते हुये, समुचित सम्पादन मानसिकता धारण करते हुये, कर्म-सम्पादन को
कर्म-योग कहा जाता है । कर्म-योग, उत्तम-कर्म का समुचित मानसिक-स्थित में
सम्पादन, साधक-साध्यम्-युति, सिद्धि, का पथ है । ..... क्रमश:
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