आश्रम-व्यवस्था
पद-परिचय-सोपान
आश्रम-व्यवस्था समष्टि विचार में, जो स्थान वर्ण-व्यवस्था
का है, वही स्थान, व्यष्टि विचार में, आश्रम-व्यवस्था का है ।
वेदों में चार आश्रम नामत: ब्रम्हचारी, गृहस्थ, वाणप्रस्थ, सन्यास का उल्लेख है । ब्रम्हचारी आश्रम पठन शिक्षण
ग्रहण करने का, जीवन में प्रवेष का भाग है । गृहस्थ आश्रम जीविका
अर्जन और पारिवार-धर्म के निर्वाह का भाग है । वाणप्रस्थ में व्यक्ति अपने को
गृहस्थ जीवन से समेटता है और शास्त्रीय अध्ययन और वैराग्य की ओर अग्रसर होता है ।
सन्यास पूर्ण रूप से तटस्थ जीवन का भाग है । उपरोक्त कथित आश्रम व्यवस्था का
उद्देष्य भी प्रेय: और श्रेय: की प्राप्ति के लक्ष्य प्राप्ति के उद्देष्य से है ।
...... क्रमश:
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