गुरू-शास्त्र-निष्ठा
पद-परिचय-सोपान
गुरू-शास्त्र-निष्ठा ज्ञान-यात्रा सदैव व्यक्ति की गुरू और शास्त्र के प्रति समर्पित निष्ठा
के आश्रित है । दीर्घ-कालीन समर्पित सन्लग्नता अपेक्षित है ।
सूक्ष्म-तात्विक-ज्ञान गूढ है । मस्तिष्क सान्सारिक लोक-व्यवहार में संलग्न है ।
उपरोक्त कथित दोनो स्थितियाँ एक दूसरे के विरुद्ध स्वभाव की हैं । ज्ञान-सम्भावना
का स्थल मस्तिष्क है । मस्तिष्क का नियन्त्रण सर्वोपरि महत्व का है । गुरू और
शास्त्र के प्रति निष्ठा-पूर्वक समर्पण के फल से ही मस्तिष्क का नियन्त्रण सम्भव
हो पाता है । ..... क्रमश:
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