विचारशीलता विस्तार
पद-परिचय-सोपान
विचारशीलता विस्तार सामान्य रूप के लोकव्यवहार में, व्यक्ति का अहंकार-बोध, व्यक्ति को अपने स्वत: को, सर्वोच्च के रूप में अनुभूति कराता है ।
परन्तु, कंचिद व्यक्ति समष्टि अर्थात्
विराट-देवता का विचार करे, तो
पायेगा कि विराट के सापेक्ष उसके अपने स्वत: एक अस्तित्व का क्या सामर्थ्य
अनुपात है ? उत्तर कंचिद शून्य होगा । उपरोक्त कथित
विचार के अभ्यास, समष्टि को प्राथमिक महत्वपूर्ण अवयव के
रूप में स्वीकारना, व्यक्ति के अपने विचारशीलता के विस्तार
के रूप में प्रमाणित होता है । उपरोक्त वर्णित मस्तिष्क की विचारशक्ति का विस्तार, मस्तिष्क के नियन्त्रण के विचार में, अत्यन्त प्रभावी विधि है । यह समाधि-योग
का एक विलक्षण पथ है । अभ्यास अपेक्षित है । ..... क्रमश:
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