उत्तम-कर्म


पद-परिचय-सोपान
उत्तम-कर्म पंच-महा-यज्ञो को वेदों में उत्तम-कर्म बताया गया है । पंच महा-यज्ञ, देव-यज्ञ, पितृ-यज्ञ, ब्रम्ह-यज्ञ, मनुष्य-यज्ञ, भूत-यज्ञ होते हैं । कृतज्ञतापूर्ण सेवा को यज्ञ कहा जाता है । देव अर्थात् समष्टि है । पितृ उन समस्त पूर्वजो को कहा जाता है जो दिवंगत हो चुके हैं । वर्तमान संदर्भ में ब्रम्ह अर्थात् वेद हैं । भूत अर्थात् मनुष्य से व्यतिरिक्त समस्त जीव-कोटि है । उत्तम कर्म यथा उपरोक्त व्यक्त, यह व्यक्त करते हैं कि व्यक्ति को समष्टि, दिवंगत-पूर्वज, वेद, समूचे मनुष्य समुदाय, और समूचे जीव-कोटि के प्रति कृतज्ञता के भाव से युक्त सेवा को अर्पित करने का मानसिक संकल्प होना चाहिये । उपरोक्त कथित मानसिक संकल्प एक वैदिक व्यक्ति का लक्षण है । ..... क्रमश:   

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