ज्ञान-योग
पद-परिचय-सोपान
ज्ञान-योग
ज्ञान प्राप्ति के लक्ष्य से किये गये पुरुषार्थ को ज्ञान-योग कहा जाता है ।
व्यक्ति के अपने स्वरूप का ज्ञान, को ज्ञान कहा जाता है । व्यक्ति का
स्वरूप उसकी आत्मा है । आप्नोति इति आत्मा । जो सर्वत्र व्याप्त है, उसे आत्मा कहा जाता है । उपरोक्त समस्त अभिव्यक्ति कंचिद विस्मयकारक है
। व्यक्ति अपनी स्थूल शरीर को, अपने मस्तिष्क को अपना परिचय जानता है । परन्तु
उपरोक्त वर्णित अनुभवगम्य परिचय भ्रामक है, अज्ञान है । अनेक प्रश्न विचारणीय हो
जाते हैं, यथा आत्मा क्या है ? आत्म-ज्ञान की आवश्यकता क्यों है ? अज्ञान क्यों है ? अज्ञान के लिये दोषी कौन है ? ज्ञान प्राप्ति का पथ क्या है ? आदि अन्य और भी । उपरोक्त वर्णित जिज्ञासाओं पर विचार किया जाता है ।
..... क्रमश:
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