समुचित मानसिकता


पद-परिचय-सोपान
समुचित मानसिकता व्यक्ति जब भी, किसी भी कर्म को करता है, सम्पादन पूर्ण होते ही, वह कर्म ईश्वर के क्षेत्र में हो जाता है । ईश्वर, कृत-कर्मों का, प्रकृति के संविधान द्वारा, उनका परीक्षण परिणाम प्राप्त करते हैं । ईश्वर, उपरोक्त वर्णन अनुसार प्राप्त हुये प्रकृति-संविधान-शोधित परीक्षण परिणामों को, कर्ता व्यक्ति को, कर्म-फल के रूप में, प्रत्यावर्तित करते हैं । उपरोक्त वर्णित समस्त प्रक्रिया में, व्यक्ति की मानसिक-दशा, एक- व्यक्ति द्वारा कर्म करने की अवधि में, और ईश्वर द्वारा प्रत्यावर्तित प्रकृति-संविधान-शोधित कर्म-फलो को ग्रहण करने में, दोनो ही महत्वपूर्ण हैं । कर्म-सम्पादन अवधि में, ईश्वर को सेवा-अर्पण की मानसिक-दशा, और ईश्वर द्वारा प्रत्यावर्तित प्रकृति-संविधान-शोधित कर्म-फलो को ग्रहण करने में, ईश्वर के प्रसाद की मानसिक-दशा को समुचित बताया जाता है । ..... क्रमश:       

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