ज्ञान-प्राप्ति
पद-परिचय-सोपान
ज्ञान-प्राप्ति ज्ञान व्यक्ति का स्वरूप है । इसलिये ज्ञान-प्राप्ति एक भ्रामक
अभिव्यक्ति है । यह कोई उपलब्धि अथवा अवसर नहीं है । व्यक्ति अपने स्वरूप से
अनभिज्ञ है । व्यक्ति की अपने स्वरूप की अनभिज्ञता का निवारण ही ज्ञान है । अत:
ज्ञान अर्थात् आत्म-स्वरूप को स्व के रूप में धारण करना ही ज्ञान है । उपरोक्त
वर्णित ज्ञान को स्व-स्वरूप धारण करने की प्रक्रिया को, विद्वान आचार्य-गणों ने तीन चरणों में विभक्त करके जिज्ञासु को ग्राह्य
कराने की चेष्टा करते हैं । उपरोक्त कथित प्रत्येक तीन चरण का परिचयात्मक उल्लेख
आगे के तीन अंको में प्रस्तुत किया जायेगा, अनुसरण निवेदित है । ..... क्रमश:
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