बन्धन
पद-परिचय-सोपान
बन्धन
प्रेय: पुरुषार्थों में दो प्रकृति जन्य दोष होते हैं । प्रेय: का आभाव मानसिक
क्लेष-कारक होता है । दूसरा, प्रेय: की उपलब्धि भार होती है, जो कि मानसिक तनाव-कारक होती है । उपरोक्त कथित दोनो स्थितियाँ व्यक्ति
का बन्धन हैं । उपरोक्त कथित बन्धन से मुक्ति का केवल एक पथ है । पथ, व्यक्ति को अपने स्वरूप का ज्ञान है । आत्म-ज्ञान बन्धन से मुक्ति का
उपाय है । आत्म-ज्ञान मोक्ष है । उपरोक्त कथित बन्धन प्रकृति जन्य है । अपरिहार्य
है । अनादिकालीन है । परन्तु उपरोक्त का अन्त ज्ञान द्वारा सम्भव है । .....
क्रमश:
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