स्व-स्वरूप-धारण चरण 1
पद-परिचय-सोपान
स्व-स्वरूप-धारण चरण 1 ज्ञान सम्भावना का केवल एक पथ, ज्ञान को स्व-स्वरूप में धारण करना, है । अज्ञान का निवारण, शास्त्र उपदेश को, दीर्घ अवधि पर्यन्त, क्रमिक शिक्षा-पद्धति द्वारा, गुरू के सानिध्य में रहकर, निष्ठापूर्ण श्रवण द्वारा होता है । अज्ञान
के निवारण मात्र से व्यक्ति को ज्ञान का शाश्वत् स्वरूप बोध, व्यक्ति में व्याप्ति-बोध के रूप में उदय होती है । उपरोक्त वर्णित
स्थिति स्व-स्वरूप-धारण का प्रथम चरण मात्र है । ...... क्रमश:
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